Here's the poem titled Maa penned by Nida Fazli:
माँ
बेसन की सोंधी रोटी पर
खट्टी चटनी जैसी माँ ,
याद आती है चौका-बासन,
चिमटा फुँकनी जैसी माँ ।
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर
हर आहट पर कान धरे ,
आधी सोई आधी जागी
थकी दुपहरी जैसी माँ ।
चिड़ियों के चहकार में गूँजे
राधा-मोहन अली-अली ,
मुर्गे की आवाज़ से खुलती,
घर की कुंड़ी जैसी माँ ।
बीवी, बेटी, बहन, पड़ोसन
थोड़ी-थोड़ी सी सब में ,
दिन भर इक रस्सी के ऊपर
चलती नटनी जैसी मां ।
बाँट के अपना चेहरा, माथा,
आँखें जाने कहाँ गई ,
फटे पुराने इक अलबम में
चंचल लड़की जैसी माँ ।
*** *** *** ***
Maa
Besan ki sondhi roti par
Khatti chatni jaisi maa
Yaad aati hai chauka-baasan
Chimta phukani jaisi maa
Baans ki khurri khaat ke oopar
Har aahat par kaan dhare
Aadhi soyee aadhi jaagi
Thaki dopahari jaisi maa
Chiriyon ke chahakaar mein gunjey
Raadha-Mohan Ali-Ali
Murghe ki awaaz se khulti
Ghar ki kundi jaisi maa
Biwi, beti, behan, padosan
Thordi thordi si sab mein
Din bhar ek rassi ke oopar
Chalati natni jaisi maa
Baant ke apna chehra, maatha,
Aankhien jaane kahaan gayi
Phatey puraane ek album mein
Chanchal ladki jaisi maa.
[Chowka-baasan = kitchen-utensils]
chimta = tong/ phukani = blow-pipe used to make chapatis]
[Khurri Khaat = a cot without a sheet]
[natni- tribal woman who shows stunts, including walking on the rope.]
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ग़ज़ल, नज़म, शेर और शायरी सब कुछ ही तो है... लिखने वाले भी क्या क्या रंग बिखेर देते है.. यहाँ मेरा लिखा कुछ भी नहीं, मैं सिर्फ़ अपनी पसंद को एक जगह देना चाहती हूँ, बस इसीलिए यह अनमोल सौगातें बटोर रही हूँ!!
Friday, May 8, 2009
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अपूर्व!
ReplyDeleteमाँ पर इतनी अनूठी कविता मैंने पहली बार पढ़ी!
सचमुच, यह अनमोल है!
अच्छा प्रस्तुतीकरण!
बधाई!
शुभकामनाएँ!
अपूर्व!
ReplyDeleteअच्छा प्रस्तुतीकरण!
माँ पर इतनी अनूठी कविता मैंने पहली बार पढ़ी!
सचमुच, यह अनमोल है!
बधाई!
शुभकामनाएँ!